सनमके पास जानेसे, फिकर घरबारकीं छूटी

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका...)
सनमके पास जानेसे, फिकर घरबारकीं छूटी ।
न पर्वा साथ कुफरोंकी, वो जालिम हाथसे टूटी ।।टेक।।
जहाँ देखूँ वहाँ प्यारा, अजी प्यारेने घर हारा ।
सदा   अमृत   झरे   धारा,   आपको   आपने   लूटी ।।१।।
कहाँ गादी कहाँ तकिया? कहीं मट्टीपे तन रखिया ।
दिवानी होगयी अखियाँ, जनम और मरण-लौ खूटी ।।२।।
कहत तुकड्या सुनो भाई ! निजानंदोकी धुन पाई ।
अमरमें उमर गुम होई,   हरे   भव   स्वानुभव - बूटी ।।३।।