अरज मेरी सुनो स्वामी ! कृपा मुझपर करोगे क्या ?

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका.. . )
अरज मेरी सुनो स्वामी ! कृपा मुझपर करोगे क्या ?
पडा हूँ द्वैतमें अटका, यह दुःख मेरा हरोगे क्या? ।।टेक।।
नहीं तुमबिन दुजा दाता, मेरा दिलदार तू त्राता ।
किसीसे फिर नही नाता, अविद्या टाल दोगे  क्या ? ।।१।।
बंधा हूँ कर्म-फाँसोंमें, पडा हूँ विषय-आसोंमे ।
गड़ा हूँ प्रेम -भासोंमे, दास दिल यह धरोगे कक्या ? ।।२।।
हुआ हूँ त्रिविधसे तापी, तराओ दासको आपी ।
सहारेसे तरे पापी, वो    तुकड्या   उद्धरोगे   क्या ? ।।३।।