खड़ी बटमार अजलोंकी, जरा उससे डरो बाबा

( तर्ज : अगर है शौक मिलनेका...)
खड़ी बटमार अजलोंकी, जरा उससे डरो बाबा ।
समयकी मत करो जिल्लत, जलिल को टुक हरो बाबा ! ।।टेक।।
गमाया ऐसी वक्तीको, न आनेकी दुजी बारी ।
जुदाई-पेशिमा तजके, विषय - जुल्फी हरो बाबा ! ।।१।।
मुनासिब वक्त छोटा है और मन्नत खोहि दी सारी ।
बिनाशी हो रहे हो क्यों ? नजर कादर भरो बाबा ! ।।२।।
याफते छोड़कर ऐसी, कहाँ घुमने को जाते हो ?
गया यह वक्त सैलानी ! नही फिर आने रो   बाबा ! ।।३।।
समाजत कर महब्बुबकी, खुशी हो जन्नती पाना ।
कहे तुकड्या सदा जीनत - जहालत से सरो बाबा ! ।।४।।