अजब तेरा तमाशा है, जमाने के भितर बाबा !

( तर्ज : अगर हैं शौक मिलनेका... )
अजब तेरा तमाशा है, जमाने के भितर बाबा !
खुला है बाव जन्नतका, बजफ दरगे सितर बाबा ! ।।टेक।।
कहाँ परसाव का रहना, कहाँ पस्तार को देखे ?
बाजगी जुल्फ धारोंसे, सितरको दे फितर  बाबा ! ।।१।।
किसे जन्नत किसे दोजख, किसीको टुक अरामी है ।
किसे आदाब देकरके, उडाता  है    इतर   बाबा ! ।।२।।
कोई मस्तान हों बैठे, कोई रंगमें  रंगीले है ।
कहे तुकड्या तेरी कुदरत, खुदीमें है जितर बाबा ! ।।३।।