सब खोइ उमर, सब खोइ उमर

( तर्ज: मेरी सुनले अरज, मेरी सुनले... )
सब खोइ उमर, सब खोइ उमर, सब खोइ उमर, सुनले प्यारे ! ।।टेक।।
बालकपनमें खेल लगा था,  तारुणपन   यौवन   धारे ।।१।।
भूल पडा इस विषयसंगमें, अंध करत सुत-मित सारे ।।२।।
बूढ़ा होकर चंचल मनसे, तनमनकी   सब सुधि   हारे ।।३।।
कहता तुकड्या राम भजो फिर, झूठ  पसारोंसे   तारे ।।४।।