इस जगमें धनही साथी है

(तर्ज : दर्शनबिन जियरा तरसे रे...)
इस जगमें धनही साथी है ।।टेक।।
और न कोई, लव सुख होई । 
द्वयपन भोई, उस बिच रोई ।
छूट पडे    धन   माती   है ।।१।।
धनकी माडी, धनकी साडी । 
धनकी बाडी, धनही गाडी ।
धन आवत सब खाती   है ।।२।।
धन जब छूटे, मानहि टूटे। 
सेहत लूटे, हर कोई रूठे ।
सब सुत-मितकी लाती  है ।।३।।
सच धन फंदा, अब वह बंदा । 
आखिर मंदा, कोई न छंदा ।
कहे तुकड्या धन घाती है ।।४।।