इस जगमें श्रीगुरु पावन है
(तर्ज : दर्शनबिन जियरा तरसे रे... )
इस जगमें श्रीगुरु पावन है ।।टेक।।
द्वयपन हरके, निजबिज धरके ।
भव जा तरके, स्वरूप पकरके ।
तोड जनमको आवन है ।।१।।
ग्यानहि सारा, रूपका हारा ।
दंभ विकारा, हो अब न्यारा ।
मुक्त करो अब जीवन है ।।२।।
चरण सुधरते, दुष्टभी तरते ।
देह उजरते, समरूप धरते ।
रमते हरिगुण - गावन है ।।३।।
कहे तुकड्या नर ! दुजपन सब हर ।
गुरु एक ईश्वर, उसके चरण धर ।
धरत चरण सुख - साँवन है ।।४।।