सुन खेचर मुद्रा लाग रही तनमों

(तर्ज : निरंजलमाला घटमों ...)
सुन खेचर मुद्रा लाग रही तनमों ।।टेक।।
स्थिर करो मन, बैठ संतजन - संगतमें मनमों ।
तजो अविद्या और झुठाई, छोड चलो बनमों ।।१।।
भ्रुकुटीमें पल दृष्टि जमाकर, देख गगन-घनमों ।
चंद्रसुरजबिन तारे बरसे, बाल   झुले   उनमों ।।२।।
जो दिनरात इसीको ध्यावे, अंत तरे क्षणमों ।
जमका धाका टूट पडे फिर, मस्त रहो धुनमों ।।३।।
कहता तुकड्या प्रेमभावना, फूट पड़े जनमों ।
पापपून दो खारिज होवे,   शून्य   रहे   धनमों ।।४।।