आकरके हरि ! प्रेम पिलाना

( तर्ज : दर्शन बिन जियरा तरसे रे !..)
आकरके हरि ! प्रेम पिलाना ।।टेक।।
रोवत रोवतही मैं हारा । भूल परा सब निज घरद्वारा ।
सार विचार न मारत मारा, श्रीगुरु ! जमका मार टलाना ।।१।।
कंठहिमें सबकोंका दौरा । निर्जरका नहिं दिलमें रौरा।
कर्मनसे चंचल दिल  भौरा, निजरूपमेंही लाय   डुलाना ।।२।।
पाँच विषयसे सद्गुण भागा । क्रोधादिक तोडे सुखधागा ।
भय हरदों प्रभु ! होवत नागा, आपमें आपी फेर मिलाना ।।३।।
कहता तुकड्या है न तेरे बिन । तारक-मारक, तूहि दयाघन |
जन्ममरण का हर आवर्तन, नैनन रूप समाय   दिलाना ।।४।।