जोग में अडकता, बडबडता, क्यों अनुभव के घर नहीं चढता
(तर्ज : नववधू प्रिया मी वावरते...)
जोग में अडकता, बडबडता,
क्यों अनुभव के घर नहीं चढता ? ।।टेक ।।
जहाँ बदनपर भस्म लगाये।
किसकी सेवा नहीं कर पाये।
मैं-मैं करके कौन, सुनेगा ?
नम्रता, सज्जनता नहीं रखता ।। 1 ।।
भरा जीवन हैं, जन-गण सारा।
अमृत बानी का रस प्यारा ।
भर -भर घर-घर कर उजियारा ।
निरखता विहरता नहीं फिरता ।। 2 ॥
गये सुदिन वे ऋषि -मुनियों के ।
तप - साधन करके प्रभु पाके।
तन -मन -धनसे सत - संगतसे -
सुमरता तभी तो उध्दरता ! ।। 3 ।।
यहाँ जमाना बदल गया है।
नया मोड सबमें ही भया हैं ।
तरतर करनेसे नहीं बनता |
समझना यही है गुण गुणता ।। 4 ।।
भरा ब्रह्मा सब अन्तर्यामी |
आपही तुकड्या रहता प्रेमी ।
कलबल कलबल नहीं यश देती |
सफलता फले - जब भावुकता ।। 5 ।।