जानत हूँ सुख इसी चरणमें
( तर्ज : दर्शन बिन जियरा तरसे रे !.. )
जानत हूँ सुख इसी चरणमें ।।टेक।।
गंगा शिरपर जटा बिराजे,
यही स्वरुप ध्याता हूँ मनमें ।।१।।
लोचन भाल विशाल कंठ शुभ,
भंग रमे जिसकी निजतनमे ।।२।।
बैलसवारी नाग विभूषण,
रामनाम है जिसके जपनमें ।।३।।
अंग बभूती मृगचर्मासन,
भोला है जी ! सब देवनमें ।।४।।
कहता तुकड्या शंकर-शंकर
जप करते नर तरता क्षणमें ।।५।।