कैसी नैनोंमे नैना चुरा रही !

(तर्ज : नागरी जुल्फोपे दिल निसार है...)
कैसी नैनोंमे नैना चुरा रही !
सिर्फ संतोने जाकर किया सही ।।टेक।।
भाई ! नैनोकें भीतर उजाला खड़ा ।
चाँद - सूरज न था पर दिखा है बडा ।
वास तेराहि तेरा   है   हर   कही ।।१।।
द्वार दसवाँ तो बंद, ना खुला कभी ।
कई तारे चमकते है नभमें सभी ।
थाक जमका कहीं भी लगे नहीं ।।२।।
खंभ - खंभोमें खंभा गडा श्वासका ।
ध्यान पावे वह बिरला उसी ध्यासका ।
कहत तुकड्या दुई वह दुई नहीं ।।३।।