अविनाश निजरूप मुझमें मिलादो ।
(तेज : इस तन धन की कौन बढ़ाई...)
अविनाश निजरूप मुझमें मिलादो ।
जग मिथ्य सच कौन ? वह रस पिला दो ।।टेक।।
कहाँसे मै आया ? किसने बनाया?
सचको छुपाया, असि को दिला दो ।।१।।
कौन वह कारण ? तनु मेरी धारण ।
करूँ कैसे तारण ? गूढको खुला दो ।।२।।
माया कही झूठ, क्यों है वही टूट ?
हो कौनविधि छूट ? सुख-फल खिलादो ।।३।।
गुण कौन धुन कौन ? पुन कौन ऋण कौन ?
खुण कौन न्युन कौन ? कहकर जिला दो ।।४।।
भ्रमभार सब हार, द्वयभाव सब मार ।
तुकड्या कहे तार, खुदमें सुला दो ।।५।।