हरि ! अब कौन धरुं स्थान तेरा ?
(तर्ज : तुम बिन कौन सहायक मेरो.... )
हरि ! अब कौन धरुं स्थान तेरा ? सबही जगतमें तेरा बसेरा ।।टेक।।
जाति तूही है माती तूही है, राती तूही दिन घेरा ।।१।।
तूहि नाम तूहि धाम, तूहि राम तूहि श्याम, तूहि काम सबमेंहि प्रेरा ।।२।।
तूहि तात तूहि मात, तूहि जात तूहि पाँत, तूहि नाथ ! सबमें उजेरा ।।३।।
तूहि लोक तूहि शोक, तूहि घोख तूहि झोंक, तुकड्यामें तेराहि डेरा ।।४।।