सारी उमर अकारथ खोय रहा ।

(तर्ज : कैसी कटके नि पर...)
सारी उमर अकारथ खोय रहा ।
कैसी बातोंकी धूम मचाई यहाँ ।।टेक।।
ले सुधार आजही उमरी सभी-धनी !
अनमोल पायके ये काय सुन्न क्‍यों बनी ?
बनमें भटक भटक मत जाय कहाँ ।।१।।
खेलके जुगार नार माल खोदिया ।
चोरके घरमें घुसा मदमान को लिया ।
प्यारे ! रोष और दोष बढाय बहा ।।२।l
विषयोंमें भूलकेहि तू बेहोश होगया ।
कुछ संतकी कही न सुनी, सोच ना किया ।
भूले भूलेही काल   दबाय    महा ।।३।।
कहत तुकड्या सुधार यह गुमान है ।
ख्याल करले रामका और रखले भान है ।
नारीवारीसे   संत    महान   जहाँ ।।४।।