अब भूल गयी सुध सारी
(तर्ज : मोहे मीठी लागी प्यारे... )
अब भूल गयी सुध सारी, हारी कृष्णचंद्रने माया ।।टेक।।
जमुनातट बन्सी बजाई । निज मोहन झाँकी सजाई ।
तनमनकी सुधि बिसराई, पायी है कि नहीं यह काया ।।१।।
सब भूल परी घर बारी । खानपानकी सुध हारी ।
सुन बन्सी - टेर पियारी, मारी दौर प्रेम जब छाया ।।२।।
शिर मोरमुकुट शुभ धारा । कटि पीतांबर नट न्यारा ।
निजदास सुदामा प्यारा, तारा कंचन महल दिलाया ।।३।।
कहे तुकड्या लाज रखो जी ! मेरे दिलका मेल फुँको जी ।
कर करूणा आ मनमौजी ! दोजी दंग रंग मनभाया ।।४।।