अब साक्षी होकर रहना

(तर्ज : ना छेड़ी गाली देऊँगी भरने...)
अब साक्षी होकर रहना, सत्‌का कहना जान ले ।।टेक।।
सब तेरी बनाई माया, यह बिचार तू नहि पाया ।
करके फिर गोता खाया, काया   छाया   मानले ।।१।।
सुन कहाँ रहा है नाता ? तू माता सबको पाता ।
अपने में आ मिल जाता, दाता ताता ! ग्यान  ले ।।२।।
है भरा भ्रमहिका काला, करके नहि ख़ुलता ताला ।
तू अस्ति-भाति-प्रिय लाला! माला बाला ध्यान ले ।।३।।
चल खोल नयन क्यों भूला? अब जान तूही है दुल्हा |
सून तुकड्या उसमें झुला, धूला  खूला   छान   ले ।।४।।