सुनके कर भ्रमका नाशा

(तर्ज : ना छेडी गाली देऊँगी भरने... )
सुनके कर भ्रमका नाशा, दिल धर आशा रामकी ।।टेक।।
जबतलक नही हरि-लीना, तब कर्म-धर्म है पीना ।
जब मर्म पछाना झीना, सीना-कीना थाम की ।।१।।
है देही तुच्छ अवतारा, इस देहीमें सुन प्यारा ।
देहीसे  देहिया न्यारा, सारा    थारा    नामकी ।।२।।
जो मैलपना वह हरना, सब चित्त शुध्दही करना।
फिर इस देहीमें मरना, करना करूणा धामकी ।।३।।
कहे तुकड्या हो अब बंदा, लग धर्मनीतिके छंदा ।
फिर टुटे सभीका फंदा,  गंदा   धंदा   भ्रामकी ।।४।।