क्या ढूँढन लागे बनमें ? अपने तनमें राम है

(तर्ज : ना छेडी गाली देऊँगी भरने... )
क्या ढूँढन लागे बनमें ? अपने तनमें राम है ।।टेक।।
वह सहज समाया प्यारे ! तू आ उसमे मिलजा रे !
नहि तो सब बाते हारे, सारे भारे   काम   है ।।१।।
क्या पंथ उठाकर होता ? मैल नहीं अपना धोता ।
सब लोग दिखाऊ तोता, रोता सोता दाम है ।।२।।
अब उलट करा ले नैना, उस नैनोंमे है ऐना ।
ऐनेंमें तेरा रहना,  नैना   है    ना    नाम    है ।।३।।
जगमगता गिरे सितारा, वह तूने रूप बिसारा।
कहता तुकड्या मन मारा, सारा प्यारा श्याम है ।।४।।