साधू ! क्या तनमें पाया ?

(तर्ज : ना छेड़ी गाली देऊँगी भरने... )
साधू ! क्या तनमें पाया ? खोकर माया सो रहा है ।।टेक।।
नहि बिचार कीन्हा अपना, डुल रहा देखके सपना ।
चल रहा है दिलको जपना, गरको खपना हो रहा है ।।१।।
खूब शास्त्र-पुराणहि जाना, नहि सहजगती को माना ।
जब आप नहीं पहिचाना, आना - जाना  भोरहा   है ।।२।।
कर ख्याल जरा अब प्यारे! तन-तनमेंही मरजा रे !
क्यों सब बातोंको   हारे,  धुनके   मारे   रोरहा   है ? ।।३।।
क्या जगसे रखके नाता ? कोई साथ नही फिर आता l
कहे तुकड्या भरले बाता, क्यों शिर लाते खारहा है ?।।४।।