समझ धर जरा, मनुज सुजानो हो !
(तर्ज : गुरुको देखो अपने घटमाही . .. . )
समझ धर जरा, मनुज सुजानो हो ! जगत सब अंधा सुन पाओ ।।टेक।।
ग्यानबिन जगमें, दिल ना बहलाओ l भ्रांतिसि भव ना अपनाओ l
संतसाधूसे, पार उतर जाओ । हरिको भजके गुण गाओ |
रातदिन उसमें, रमते फिर जाओ । जगत् सब ।।१।।
बाचकर पोथी, धर्मनीति धारा । क्रोध- मद - काम सभी हारा ।
तनूके अंदर, देख बसा प्यारा। उसका स्वरूप है न्यारा ।
रूप रंगमें, अनहद सुन ध्याओ । जगत् सब०।।२।।
कृपालू स्वामी, भरा सभी तनमें । भटकते क्यों हो बनबनमें ?
कहता तुकड्या, भूल पडे धनमें । लडो खुब द्वेतहरण-रणमें ।
हटाकर झगडा, नाव पार लाओ । जगत् सब ० ।।३।।