चिदानंदको भजों हमेशा
(तर्ज : हरिका नाम सुमर नर प्यारे...)
चिदानंदको भजों हमेशा, सभी पाप होते है दूर ।
खाक करो संसार-क्लेश की, पार तरो अजि! यह भवपूर ।।टेक।।
जो चैतन्य घटोंमे बैठा, देखनवाला वह मशहूर ।
त्याग करे जब गर्व तनूका, दिखे दृश्य मायाका नूर ।।
अकार यह निजस्थान समझले, जहाँ बेदका निकला धूर ।
जिसमें योगी ध्यान चढावे, प्रबल ज्योत होती है शूर ।।१।।
देखनवाला सबसे बडा है, बेद कहे नहि पाता मूर ।
सद्गुरूकों भजता जो प्यारे ! वह उसमें बनता हैं चूर ।।
स्वर्ग -मृत्यु-पाताल इन्हीमें भरा रूप निजका मामूर ।
आप आपमें भरा, अलग कर क्या देखोंगे? वही हजूर ।।२।।
देख दृश्य सब हटे पिछाडी, अद्वैती हो नीक शऊर।
अहंकारका नहीं अंशभी, अलक्ष्यके बिन सब भंगूर ।।
स्वप्न-सुषुप्ती -तुर्या जिसके बनी मार्गकी समझो हूर ।
ब्रह्मी ब्रह्म जब एक हुआ तब ब्रह्मरंध्रका टूटे चौर ।।३।।
कहे दास तुकड्या यह समझो ,सद्गुरु के बिन ना अंगूर ।
आडकुजी है मेरा वाली, जन्म-मरण टुटा बिखरूर ।।४।।