है कोई ऐसा हरिका बंदा

(तर्ज : हरिका नाम सुमर....)
है कोई ऐसा हरिका बंदा, अमृत पीवन चटका है ।
आप-आपमें मस्त हुआ, जिम बूँद गंगसे खटका है ।।टेक।।
आप-दुजा  नहि जानत धुनमें, पंच परापर लटका है l
संतसाधुकी न करे संगत, देवधर्म नहि फटका है ।
करे प्रेम कितनाभी जग वह, नहिं उसमें कभी अटका है l
साक्षिभूत जो होकर तनमें, मन आवे जब सटका है ।
गुरु-शिष्य दो एक हुए अजि! कहां गुरुको हटका है ?
करे कुदरती नियम हमेशा, कामक्रोधको पटका है ।।
क्या राजा और कहाँ रंक है, ख्याल नहीं किसी घटका है ।
आप-आपमें मस्त हुआ०।।१।।
प्रेम - भजनका झरा जहाँपर, जाम वहाँ भर गटका है ।
जिम चुंबक वह लोह उठावे, दूर हुआ तोभी पटका है ।।
ब्रह्मादिकको अंत न जिसका, नग्नकलंदर भटका है ।
आई लहर फिर चले बहर, किसी राजासे नहि अटका है ।।
पगमें सीस घसे यदि माया, नहि माने दे झटका है ।
लाल न पीला शाम न नीला, बिंद नही वह गटका है ।।
अपने में सब दुनिया देखे, मतवाला हो मटका है ।
आप-आपमें मस्त हुआ०।।२।।
जाप न जाने अजप न जाने, जानपना सब कटका है ।
नाद-बिंदका नहीं गुजारा, चार अवस्था छिटका है ।।
अस्ति-भाति-प्रियरूप उसीको, आप जानके डटका है ।
साधक -सिध्द भावकों जिसने, आत्मठानपर तटका हे ।।
जैसी भक्ति करे वह प्यारे ! वैसाही फल पटका है ।
पापपुण्य सब हटे पिछाडी, जीव निरामय बटका है ।।
कहता तुकड्या निर्विकल्प निज बीजरूपको गटका है ।
आप - आपमें मस्त हुआ०।।३।।