टूटा बीन बजाओ, मोहन !
(तर्ज : प्रेमहिकी भूखी है अँखियाँ ..... )
टूटा बीन बजाओ, मोहन ! टूटा बीन बजाओ ।।टेक।।
इसी बीनको दश हैं तारा । जिनका सूर चले अति प्यारा ।
अपने रँगकी देकर तारी । सबमें कृष्ण कहा ओ ।। मोहन ।।१।।
पंचतत्त्वका बीन बनाया । त्रैगुणकी है जिसे खूँटियाँ ।
मनके ऊपर तार चढाकर । एकहि सूर लगाओ ।। मोहन ।।२।।
तुम्हरे हाथों बीन बजेगा । वहि सबमें सुर - साज सजेगा ।
तुकड्यादास कहे निजरंगमें । एकहि रंग चढाओ ।। मोहन ।।३।।