हमको झुका रहा है, तेरा स्वरूप बाबा !
(तर्ज : गजल ताल तीन)
हमको झुका रहा है, तेरा स्वरूप बाबा ! ।
दिलको सुखा रहा है, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।टेक।।
मुखमें पुकार तेरी, हर दममें आ रही है ।
दुखको रुका रहा है, तेरा स्वरूप बाबा ।।१।।
कर्णोमें याद तेरी, दिन-रात घुम रही है ।
तनको चुका रहा है, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।२।।
आँखे रुमा रही है, तन-रूह जग रहा है ।
सूंघी सुँघा रहा वह, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।३।।
मनको चरक लगी है, सुंदर पदारथोंकी ।
ईश्वर समा रहा है, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।४।।
तन-मनको आग लागी, जलवेसे जल रहा हूँ ।
प्रेम फुवा रहा हैं, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।५।।
तुकड्याकी आस यहही, दर्शन मँगा रही है ।
शंकर दिखा रहा हैं, तेरा स्वरूप बाबा ! ।।६।।