ले चल मुझे पियारे ! अपने मकान माँही

(तर्ज : गजल ताल तीन)
ले चल मुझे पियारे ! अपने मकान माँही ।
मुझको लगी है आशा, दूजा अधार नाहीं ।।टेक।।
चारों तरफ फँसा हूँ, संसारकी चिल्होमें ।
बाँधा पडा हूँ ऐसा, जिसका शुमार नाहीं ।।१।।
आँखी लगी हुई है, कुविचारके नशेकी ।
दिखता नहीं नजरसे माया - अंधारमाँही ।।२।।
हैरान हो रहा हूँ, कइ दिनहिसे जगतमें ।
कर माफ चूक मेरी, तुझमें विकार  नाहीं ।।३।।
डूबी है नाव सारी, तकदीरकी नदीमें ।
दे दो सहार अपना, तुझबीन   पार  नाहीं ।।४।।
फाँसा पडा है जमका, आगे - पिछू हमारे ।
किरपा बिना तुम्हारी, तुकड्याको थार नाहीं ।।५।।