ईश्वर ! तुम्हारे दर्शन की भूख हमको भारी

(तर्ज : गजल ताल तीन)
ईश्वर ! तुम्हारे दर्शन की भूख हमको भारी ।
क्योंकर हमारी अर्जी पटती नहीं मुरारी ? ।।टेक।।
तुमही तो धृव बालक, आजादमें  बिठाया ।
मेरी गरीबकी यह आशा   दयाल !   सारी ।।१।।
तुमही तो हो प्रभूजी ! प्रल्हादको बचाया ।
नरसिंह रूप धरके, दर्शन   दिये   मुरारी ! ।।२।।
कहते पुराणमाँही तुम हो दयाल दाता ! ।
क्यों नूरको छुपाकर करते हो आज देरी ? ।।३।।
उस बहन द्रौपदी की, जा करके लाज राखी ।
तुकड्याको याद साखी, भूले नही   पियारी ।।४।।