ईश्वर ! दरस तुम्हारा, कैसे हमें मिलेगा ?

(तर्ज : गजल ताल तीन)
ईश्वर ! दरस तुम्हारा, कैसे हमें मिलेगा ? ।।टेक।।
जगमें डुबे हुए है, आशाको साथ लेकर ।
दिन बीतते ये जाते, कब   राहमें   चलेगा ? ।।१।।
कबहूँ न नाम लीन्हा, कबहूँ न धर्म दीन्हा ।
नहिं प्रेम-भाव चीन्हा, कब प्रेम यह फलेगा ? ।।२।।
तन देह - गर्व भारी, शांती नहीं पियारी ।
नित काम-क्रोध वशमें,  आवे यह  याद   होगा ।।३।।
व्यसनोंसे मार खाये, घरदारसे पिसाये।
प्रभू-नामको छिपाये, कब कर्म यह   हिलेगा ? ।।४।।
करुणानिधान ! तुम हो, दीनोंके साह्यकारी ।
तुकड्याकी लाज रखना तकदिर जभी खुलेगा ।।५।।
                        (दिल्ली)