ईश्वर ! दया तुम्हारी, बिरलाद समायी

(तर्ज : गजल ताल तीन)
ईश्वर ! दया तुम्हारी, बिरलाद समायी ।
सारे भूले पड़े हैं,  माया - अंधारमाँही ।।टेक।।
चाहे वह योग साधे, तेरे दिदार खातिर ।
लेकिन सभी वृथा हैं, बिन प्रेम   पार   नाहीं ।।१।।
लाखों किताब देखे, वेदान्त पाठ करके ।
कुछ भी पता न पाया, बिन भाव सार नाहीं ।।२।।
चाहे करे तपस्या, बनमें  धुनी लगाके ।
तो भी न पार पाया, शांती जहाँ   न   आयी ।।३।।
जब चित्त शुद्ध नाही, तब तू उसे दुराई ।
तुकड्या कहे न पाई, गुरुकी   बिना   दुहाई ।।४।।