ऐसा है नाम तेरा, कइ बेद शास्त्र गावे

(तर्ज : गजल ताल तीन)
ऐसा है नाम तेरा, कइ बेद शास्त्र गावे ।
नादान के  समयपर, दिलकों  सबर दिलावे ।।टेक।।
भारी बिपत पडी थी, प्रल्हाद के बदनपर ।
तब दौर दौर आया, नख   से   असूर  छावे ।।१।।
भूला फिरा रहा था, धृवबाल बन-बनों में ।
ऐसी जगह दिलायी, कबहूँ   न   ऊठ  पावे ।।२।।
जब द्रौपदी की हाँकी, सुनतेहि  कानमाँही ।
लाखोंही चीर दीन्‍हे, तब  लाजकों   बचावे ।।३।।
मेरी गरीब की है, अर्जी दिदार खातिर।
तुकड्याको साथ देकर, चरणों में ले समावे ।।४।।