क्योंकर भटक रहा है, भारत वतन हमारा ?

(तर्ज : गजल ताल तीन)
क्योंकर भटक रहा है, भारत वतन हमारा ? ।
अंधे भये है सारे, नहीं ग्यानका उजारा ।।टेक।।
परतंत्र आँख कीन्ही, स्वातंत्र्यता न लीन्ही ।
बाँधेसे बँध रहे है, समझे नहीं इशारा ।।१।।
मानव स्वधर्म भूले, लूटे गये है भोले ।
परदेश जाय झूले, बैठे है अन्धकारा ।।२।।
कुछ वीरता न पायी, भूले है देश-भाई ।
दुसरेके पग उठाई, भोगे पतन-दुबारा ।।३।।
सब धर्मको बिसारे, अपधर्मको सुधारे ।
तुकड्या कहे पियारे ! कर पाठ यह करारा ।।४।।