कितना तुझे सुनाऊँ ? सुनता न है पियारे !

(तर्ज : गजल ताल तीन)
कितना तुझे सुनाऊँ ? सुनता न है पियारे !
मस्तान हो पडा है, धनमें दिवानिया   रे ! ।।टेक।।
लखलूट तीन दिनकी, तेरी नजरमें आवे।
फिर छोडके चलेगा, टुकमें फँसा जिया    रे ! ।।१।।
घर मात तात भाई, साले बहू जवाई ।
मौतोंमे कौन आई ? कर ख्याल यह पिया रे ! ।।२।।
तिरियासे संग करके, भूला जगतमें आया ।
कोई न साथ तेरे, धनके     टपे     है      सारे ।।३।।
अब छोड यह अंधेरा, उजियार में बसा जा ।
तुकड्या कहे प्रभूको, सुमरो जकमें मिया  रे ! ।।४।।