कितनी दवा चढाऊँ, जब यह बुखार जावे ?
(तर्ज : गजल ताल तीन )
कितनी दवा चढाऊँ, जब यह बुखार जावे ?
बहु दिनहिसे पडा हूँ, नब्जी न देख पावे ।।टेक।।
भव - रोग तनमें मेरे, उसने सभी बिगाडा ।
अब क्या करूँ दिवाने! तुझको न नैन आवे ।।१।।
काशी में जाय देखा, भ्रमणा न भूली मेरी।
सब लूटने जमे है, मुझे कोइ ना छुडावे ।।२।।
सब धाम घूम आया, नहीं रोग यह मिटाया ।
तन में किने बिठाया ? खूब मस्त माँस खावे ।।३।।
बातें पुराण गाई, संतों से ले दवाई ।
तुकड्या वही कहाई, फिर - फीर गान गावे ।।४।।