रंगमें झिलमिल झडिया लागी ।

(तर्ज : गजल ताल तीन )
रंगमें झिलमिल झडिया लागी । हम तो भये उसीमें दंग ।।टेक।।
आसन पदम सहजमें कीन्हा, धर एकांत सुअंग ।
खेचर मुद्रा दृष्टि जमायी,    लखे     गगनमों   रंग ।।१।।
तिडिमिड़ी तारे उठे अकाशा, जैसे दीप-पतंग ।
जिधर उधर उसका उजियाला, चढी उसीकी भंग ।।२।।
धूर बरण प्रथमाइ समाया, ऊठत भूर सुरंग ।
सद्गुरू ध्यान धरत मन भूला, बने    नंग    निःसंग ।।३।।
लालही लाल लखाकी पावे, मस्त भये अडभंग।
बूझी आँख आँखिया पाया, तुकड्यादास   निरंग ।।४।।
                                          - ओंकारजी