तब बही प्रेमकी धारा रे ! जब हुआ दर्श-उजियारा ।।टेक ।।

(तर्ज: बालमा... )

तब बही प्रेमकी धारा रे ! जब हुआ दर्श-उजियारा ।।टेक ।।
कौन रोक सकता दिलमनको ? मिला हृदयसे प्यारा ।
टूट गये बन्धन साधनके, पाया पंथ नियारा।
बढ गयी इसीसे खुशी , नशा दिल बसी, चमक गया तारा ।।1॥
दो नयना छिप गयी नयनमें, हुआ एक गुण सारा।
भेदभाव की दिवार टूटी, अखण्ड सुखकी धारा ।
जब सुनी अनहदकी तान, मस्त हुयी जान,प्रगट भया प्यारा ।।2।।
जित देखू उत मनमोहन है, वही रंग रुप सारा ।
अलग अलग सबकी धुन बाजे, बाजे नाद नगारा।
तुकड्याकी खोगयी सुध, जरा नहीं बुध, मिटे अहंकारा ।।3।।