साधो ! पद पाया निर्बाना
(गजल - ताल तीन)
साधो ! पद पाया निर्बाना, मुद्रा अगोचरी के संग ।।टेक।।
सहजासन- आसनपे बैठा, खूला आँखों अंग ।
ऊर्ध्व दृष्टि नयनोंपे मारी, खूले चारो रंग ।।१।।
रक्त शुभ्र और पीतसपीता चौथा श्याम सुरंग ।
जगमग चमकन लागे तनमें, जैसे फूल-तरंग ।।२।।
श्रवणद्वार खुलवाय लपेटा, नशा चढी अडभंग ।
रखि नगारा भेरी बाजे, बाजत और मृदंग ।।३।।
भूल पडी सब तन-पहरानी, बैठे जैसे नंग ।
सुन्न महलका द्वारा खुला, जबाँ हुई है बंद ।।४।।
झिलमिल अमृत टपकन लागे, रंग रंगोल सुगंध ।
क्या बोलूं बोले नहीं जावे, आपही भोगे रंग ।।५।।
सूरत प्रेम-झरनकी लागी, छूटे जमसे टंग ।
तुकड्यादास कहे पहचानो, जब बैठोगे दंग ।।६।।