लगी घरकी तुमको फाँसी ।

(तर्ज : मुखसे रामभजन कर लेना... )
लगी घरकी तुमको फाँसी । काहेको जा मरते काशी ! ।।टेक।।
बेटा - बेटी भाई - बंद सब, इनसे मन नहीं छूटा ।
आशा - मनशा    घरमें   सारी,   करम   इसीमें    जूटा ।।१।।
मोहबतसे  लोगोंकी सारी, काशी मरजाओगे।
दिल - आशा नहीं छूटी घरकी, जिन्द    बने    आओगे ।।२।।
जाना है काशी जो तुमको, बाँट करो धन सारा ।
कोइ मेरा अब नहीं कहो, फिर  लगे  मोक्ष   का   थारा ।।३।।
नहीं तो जानेमें न मजा है, क्यों पैसोंको खोते ?
कहे तुकड्या बिगडीको सुधारो, वहाँके फल यहाँ पाते ।।४।।