कहाँतक तुमको समझाऊँ ?
(तर्ज : मुखसे रामभजन कर लेना... )
कहाँतक तुमको समझाऊँ ?नहीं सो कैसा बतलाऊँ ? ।।टेक।।
आपहि अपना करो बिचारा, मोक्ष तभी पाऊँ ।
संत-चरण धर दिलके अंदर, कितना अब गाऊँ ? ।।१।।
सत्संगत बिन ज्ञान न पावे, अनुभव कहता हूँ ।
चरण परो उसके जाके अब, कितना समझाऊँ ? ।।२।।
जडी - बूटी कुछ काम न आवे, हो तो दिलवाऊँ ।
वहाँ तो करनी अच्छी होना, जब तीरथ न्हाऊँ ।।३।।
आपही अपना सोचो भाई ! सब यह नकलावू ।
तुकड्यादास जोर कर बोले, बहिरंगी गाऊँ ।।४।।