जगमें चाह बुरी भाई ! चाहने सब दुनिया खाई
(तर्ज : मुखसे रामभजन कर लेना... )
जगमें चाह बुरी भाई ! चाहने सब दुनिया खाई ।।टेक।।
चाह हरामी लगी पिछाडी, तोड दई चतुराई ।
बडे बडे साधू डूबवाये, किसे नही अटकाई ।।१।।
गरचे तनमें चाह न होती, तन ईश्वर बन जाई ।
बिरला कोई चाह छुडावे, बेडा पार कराई ।।२।।
इसी चाहने सोंग बनाया, दुनिया नजर कराई ।
जोरु-लडके पिछे लगाकर, फेर-फेर भटकाई ।।३।।
गरचे तुमको तरना हो तो, तोडो चाह बुराई ।
तुकड्यादास कहे निर्भय हो, सच्चा पावे साँई ।।४।।
(----- चिमुर चातुर्मास यज्ञ)