जवानी सबको भोई है ।
(तर्ज : मुखसे रामभजन कर लेना... )
जवानी सबको भोई है । जीव संजीवन गोई है ।।टेक।।
ब्रम्हाजीको भरी जवानी, सुतको छोई है ।
नारदजी तो मर्कट कीन्हे, फिरत भुलोई है ।।१।।
शंकरजीने छोडी लँगोटी, ब्रतको खोई है ।
पाराशर ढीमर-सुत भोगे, बुधिया सोई है ।।२।।
श्रृंगीऋषिको आई जवानी, तपको ढोई है ।
इंद्रादिक भूले ज्वानीसे, पाप संमोही है ।।३।।
जबलग सत्य चित्त नहीं डोला, तबलग वहही है ।
तुकड्या बाल बालपन लीन्हा, गुरुपद मोही है ।।४।।