जागो जागो रे ! नजरिया ।

(तर्ज : मुखसे रामभजन कर लेना... )
जागो जागो रे ! नजरिया । अब रैन अंधारी आई ।।टेक।।
दिन सब गया विषय-कामों में, चोर आयके लूटा ।
अंतकाल फिर रोता फिरता, स्वाँसा तन से छूटा ।।१।।
यह तन मेरा, वह तन मेरा, मेरा करके खोया ।
मेरा नाहीं तेरा    नाहीं,    माल    दुजेने    खाया ।।२।।
कच्ची मट्टीका घडा बनाकर, अंदर ज्योत समायी ।
उसी ज्योतिको जब नहीं जाने, खोयी देह कमाई ।।३।।
मौज -मौजमें दिवस बितावे, फिर रोवेगा भाई !
बारबार यह वक्त न आवे, लाज कहाँपर   छाई ? ।।४।।
जागे रहो अपनी बस्तीमें, नहीं तो चोर लुटाई।
काम - क्रोध ये काल टपे है,   खाते   पलकेमाँही ।।५।।
बाप-बडे तो भूले इसमें, सुतपर वक्त समायी।
सत्‌संगत में ध्यान दिलाकर, तोडो  बंधन - मायी ।।६।।
तुकड्यादास कहे मनवा ! तू, क्यों भटका जगमाँही ?
सत्‌ स्वारथ कछू करले बंदे ! नहीं तो पाप-भरायी ।।७।।