लगायी देर क्यों प्यारे ! कहाँ किस भक्तने रोका ?
(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ...)
लगायी देर क्यों प्यारे ! कहाँ किस भक्तने रोका ?
खडे है राहमें कबसे, लगी भवधार में नौका ।।टेक।।
बडा यह काल-चील्हा है, अटकते कइ पड़े जाकर ।
अगर यह वक्त खो बेठे, मिलेगा फेरके धोखा ।।१।।
सबर दिलको नहीं पावे, कहाँ किस चक्र भूलेंगे ।
उठाले दासको अपने, लिया जो ब्रीदका होका ।।२।।
पिछाडी फौज भारी है, लगी हथियारकी बंदी ।
खडे सब द्रोह करनेको, तूही मालिक है जीका ।।३।।
न छोडो दासको अपने, अगर जो पास लेना हो।
वह तुकड्यादासको आशा, तूहि प्रतिपाल असहूँका ।।४।।