पपहुँचेहिलेही दरबार, लगा दिलमें बडा प्यार

(तर्ज: कभी आर, कभी पार...)

 पपहुँचेहिलेही दरबार, लगा दिलमें बडा प्यार
आँखों छायी नशा, दिल में आया तुफान ।।टेक।।
कब कब,  मिलूं मैं मेरे गुरुदेवसे ?
जिया नहीं  माने मेरा दूरके  सन्देहसे।
(अजी! ) मेंने छोड़ा सारा नेम |
उमड़ा बाहर-भीतर प्रेम ।। आँखों 0।।1।।
फूलोंको झुकाया मैंने सरको नमाया है ।
अब तो मेरा मैंही जानूं किसने जगाया है।
(अजी! ) लगी डोलने दीवार ।
सारी नाचे हस्ती   यार ! ॥आँखों 0।।2।।
भूल गया मैंही मुझको, कहाँपे किधरसे आया?
जिधर देखता हैँ सारी गुरुदेवकी है माया।
(अजी! ) लगे बजने ये सतार।
ऊठी नस-नसमें झनकार।। आँखों 0।।3।।
कौन था हमारा जिसने लाया है दरबार में? ।
भूला दिया सारी जिन्दगी, छोडके संसारमें ।
(अजी! ) कहता तुकड्या गुरुका दास ।
होंगे किस्मत अपने पास।। आँखों 0।।4।।