वह सूरतके उजारोंमें तुम्हारा रूप दर्शाना

(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ...)
वह सूरतके उजारोंमें तुम्हारा   रूप   दर्शाना ।।टेक।।
बना यह देह तत्त्वोंका, न हमको तत्त्वकी जरूरत ।
जो जानेका वह जाने दो, रहा सो  आज   अजमाना ।।१।।
बडा यह सोंग है तेरा, जो जानेका वही जावे ।
मुझे भी भीख दिलवाकर, वह चितवन प्रेम भरमाना ।।२।।
न हमसे साधना होवे, तुम्हारा इश्क मिलनेको ।
खोलकर कुदरती परदा,    रूपको    जूप   करवाना ।।३।।
अगर हम दूसरा चाहे, न तो तुमभी पुरा करना ।
मेरा जो खास   दरबारा, उसीमें    मुझको   धरवाना ।।४।।
यह जालिमसे फँसाया हूँ, आयकर इस जमानेमें ।
वह तुकड्याकी कदर लेकर, भरा यह फेर  हरवाना ।।५।।