सुधरले राह अब घरकी

(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ...) 
सुधरले राह अब घरकी, कहाँ बनमें पडा प्यारे ? ।
यहाँ है चोरकी बस्ती, खडे है लूटने   सारे ।।टेक।।
कई तो चोरने खाये, माल-धन लूट ला करके ।
याद कर खूद किस्मतकी, पूछ आलीमसे जारे ! ।।१।।
नजर तेरी जुदाईकी, न पलटे मौत आये बिन।
प्रभूका भजन करनेसे, मिटे भवजाल   ये   सारे ।।२।।
मजा दुनियाकी लेकरके, पलकमे खोय जावेगा ।
सुधरना फेरके मुश्किल, कई ऐसी   जगह   हारे ।।३।।
छोड इस झूठ लालचको, खोज कर खास तू अपनी ।
वह तुकड्यादासकी आशा, बिना गुरु-प्रेमसे हारे ।।४।।