समझलो खूब यह दिलमें
(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ... )
समझलो खूब यह दिलमें, वही एक दीन अपना है ।
जहाँ दूजा नहीं कोई, जगत यह झूठ सपना है ।।टेक।।
न साथी देहभी आवे, तो दौलत दूर रह जावे ।
हटेंगे सब पिछाडी ये, खुदी दरबार खपना है ।।१।।
खडी की जायगी दौलत, जो उमरीमें कमायी हो !
सजा दी जायगी ऐसी, जनम और मरण जपना है ।।२।।
करोगे काज जो जैसे, भरोगे राह वह वैसे ।
न चूके फेर करनेसे, कहाँपर जाय लपना है ? ।।३।।
लगाओ प्रेमकी बाती, जलाओ देह चरणनमें ।
भजो दिन - रात ईश्वरको, बने प्रभु आपअपना है ।।४।।
रहो ऐसी जगह जाकर, जहाँपर काल ना छुवे ।
कहे वह दास तुकड्या जो, भजो गुरु नाम जपना है ।।५।।