अरे मन ! क्यों भटकता है ?

(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ...)
अरे मन ! क्यों भटकता है ? तुझे कहाँतक मनाऊँ मैं ? ।
गया अवसर नहीं आवे, कहाँ कितना सुनाऊँ मैं ? ।।टेक।।
हजारो जन्म पाया तू, कहीं सुखको नहीं देखा ।
भटकतेही लटकता है, तुझे कैसा   बनाऊँ   मैं ? ।।१।।
खबर कुछ मौतकी करले, किने आराम पाया था ।
बिना ईश्वर-भजन कोई, तरा ना यह सुना हूँ   मै ।।२।।
पकर अफसोस कुछ दिलमें, जरा तो लाज रख उसकी ।
नहीं तो फेर पछतावे, अभी मर फिर जनाऊँ मैं ।।३।।
वह तुकड्यादास कहता है, गुरु का नाम मत भूले ।
नहीं तो फेर नादानी, नहीं तुजको   गिनाऊँ    मैं ।।४।।