खडा हो तनमें मरनेको
(तर्ज : अगर है शौक मिलने का ....)
खडा हो तनमें मरनेको, तभी फिरके न मरना है ।
आजसे कूद पानीमें, जो भव-ऊपरसे तरना है ।।टेक।।
समुंदर खूब लम्बा है, सहारे बिन न को जावे ।
धरे जो यार हिम्मतको, तरे पलमें न डरना है ।।१।।
हजारों तिर रहे सागर, कई मरते डुबी खाकर।
न डरता जोकि मरनेको, उसे फिर कुछ न करना है ।।२।।
न जानो मौत औ जीना, सभी मरना तनूको है ।
तू जैसा था वहीसा है , नहीं आना - घसरना है ।। ३।।
मूलको धर अभी भाई ! जहाँ जीवन-झरा चलता ।
उसीमें मिलके रह जा तू, कहे तुकड्या न हरना है ।।४।।