अगनपर स्वार होकरके

(तर्ज : अगर है शौक मिलने की....)
अगनपर स्वार होकरके, चढो दरबार   आतमकी ।
लगाओ ध्यान कुदरतसे, हटाओ मार इस तमकी ।।टेक।।
चढाओ जापकी तारी, जिसे अजपा कहाया है ।
मिटाओ द्वैतकी  बाधा, त्यजो मद कामना मनकी ।।१।।
रंगाओ प्रेम हँसामें, समाओ रूप यह दिलमें ।
निकालो बन्धको बाहर, हटाओ मार वह   जमकी ।।२।।
कराकर साधुकी संगत, न भूलना फेरके जगमें ।
वह तुकड्यादास कहता है, जभी टूटे यह भव श्रमकी ।।३।।

                                             ----- नाशिक