हम क्या जाने ब्रम्हज्ञानको !

(तर्ज : हर भज हर भज हिरा परखले...)
हम क्या जाने ब्रम्हज्ञानको ! मायामें गोते खाये ।
सेवा करना धरम हमारा, नहीं तो मरघट में छाये ।।टेक।।
जबलग सतसंगत नहीं साधे, तबलग जूते खाना है ।
सतसंगतसे मारग पाकर, नाम प्रभूका पाना है ।।१।।
रैन-दिवस विषयोंका धंधा, राम कभू ना गाये है।
बारबार मरनेका धोखा, फेर जनमको आये है ।।२।।
नहि अधिकार बात करनेका, नीच बिचार उठाये है ।
जबलग चित्त न निर्मल होवे, तबलग जमघर छाये है ।।३।।
नहि छूटा तनका अभिमाना, देह गर्वको पाये है ।
नहि पूजा मुखसे प्रभु गाया, मैलनके सँग    छाये  है ।।४।।
चरण पकरना काम हमारा, नीति यहही सिखाये है ।
तुकड्यादास बिना सुमरणके, बिरथा ग्यान बताये है ।।५।।